Tuesday, May 8, 2012

अतीत


























याद है तुम्हे वो काली स्याही सी रात
जब हम  मिले थे
दिल के धड़कन के आगे
ट्रेन की आवाज़ भी सुनाई नहीं पड़ती थी ।

तुम्हारा उठ के आना
चेहरे पर मुस्कान लिए
हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाना
सब कुछ सुहाने सपने सा लगता है ।

आँखों के इशारो में इतनी पैनी धार थी की
शब्द छत विछत होकर बिखर गए थे
लेकिन  उस ख़ामोशी में भी सुकून था
और आज सुकून हीं खामोशियो से भरा है ।

बाहर ठिठुरती ठण्ड थी
फिर भी दिलों में नरमी और गर्मी थी
आज बाहर का मौसम  इतना गर्म  हैं 
फिर भी  दिलों में बर्फ जमी है ।


-  चंचल  प्रकाशम्  



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