पलक झपकाते हीं तेरा चेहरा नज़र आता है
नींद उड़ जाती है बस ख्वाब रह जाता है,
ख्वाबों की फंखुडिया समेटते समेटते, सवेरा हो जाता है,
और सुबह की हकीकत हृदय को अंधकार में धकेल देता है |
ये अँधेरा भी अजीब है सब कुछ दिखता है इसमें
जो न देखना चाहो उसकी चमक और भी प्रबल होती है,
अँधेरे की चमक से व्याकुल आँखे, आँसू की नदियाँ बहाती है,
और उन आँसू की नदियों से बने समंदर में दिल डूब सा जाता है |
सुनामी सी ऊची होते हुए भी लहरे न जाने क्यूँ
समय की रेत पर बने चिन्हों को मिटा नहीं पातीं,
उन अमिट सी चिन्हों में ही घिसती हुई ज़िन्दगी सोचती है
ए चंचल मन तू चंचल ही क्यू न रहा |
- चंचल प्रकाशम्
waah..waah...
ReplyDeletedil chu liye chanchal :)
ReplyDeletebadhiya hai...khub bhalo..
ReplyDeletemachaye ho prakasham
ReplyDeleteDost naam to likh dete anyway Anonymous appreciation is also encouraging :)
DeleteAwesome
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