Saturday, February 18, 2012

उम्मीदों की किश्ती















समंदर को पार  करने की  ख्वाहिश में
उम्मीदों की एक किश्ती बनायीं थी 
आत्मविश्वास के झोको ने धक्का भी लगाया था 
दुआओं  की लहरें भी सफ़र का सहारा बनी थी 
डगमगाते हीं सही पर किस्ती बढ़ चली थी ।

किनारों का शोर और कोलाहल छूट चूका था 
मन में उमंगो की तरंगे कई इन्द्रधनुष बना रहे थे 
आशा की हल्की हल्की धुप में मौसम खुशनुमा था 
क्षितिज को देख के लगता नहीं था मंजिल दूर होगी ।

सफ़र का वेग तेज़ था 
छोटे छोटे टापुओ को देख हौसला अफजाई भी हुई थी 
मगर समंदर का अपना ही अज़ीब  शोर था, गरज़ना थी 
हवाओ के झोको में नमी थी, गर्मी थी  और अज़ीब सा गंध था 
खुद से क्षितिज की दूरी कम होते न देख मन व्याकुल हो उठा ।

आत्मविश्वास के झोके धीमे पड़ने लगे हैं 
दुआओं की लहरें थमी हुई  सी लगने लगी है 
ये कैसी अज़ीब सी उदासी है, पानी पर तैरते हुए बर्फ़ और 
अति-आत्मविश्वास के तुफानो की चेतावनी तो दी थी लोगो ने 
मगर इस उदासी के बारे में किसी ने नहीं बताया था ।

शायद विषुव-प्रशांत है ये, ये वक़्त भी गुज़र जायेगा  
फिर से ख़ुशी के बयार बहेंगे , फिर से अच्छी धुप खिलेगी 
फिर से इंद्रधनुषी सपने आयेंगे, फिर से लहरों में चंचलता आएगी 
डगमगाते हीं सही पर किस्ती बढ़ चलेगी ।


- चंचल प्रकाशम्



Wednesday, February 8, 2012

यादें


पलक झपकाते हीं तेरा चेहरा नज़र आता है
नींद उड़ जाती है बस ख्वाब रह जाता है,
ख्वाबों की फंखुडिया समेटते समेटते, सवेरा हो जाता है,
और सुबह की हकीकत हृदय को अंधकार में धकेल देता है |

ये अँधेरा भी अजीब है सब कुछ दिखता है इसमें
जो न देखना चाहो उसकी चमक और भी प्रबल होती है,
अँधेरे की चमक से व्याकुल आँखे, आँसू की नदियाँ बहाती है,
और उन आँसू की नदियों से बने समंदर में दिल डूब सा जाता है |


सुनामी सी ऊची होते हुए भी लहरे न जाने क्यूँ
समय की रेत पर बने चिन्हों को मिटा नहीं पातीं,
उन अमिट सी चिन्हों में ही घिसती हुई ज़िन्दगी सोचती है
ए चंचल मन तू चंचल ही क्यू न रहा |


- चंचल प्रकाशम्