Friday, February 10, 2017

सवाल

काली रातों में टिमटिमाते तारे ऐसे लगते  हैं जैसे
हकीकत के समंदर में ख़्वाबो के टापू  ।

तारों के होने से रोशनी तो नहीं मिलती मगर
रोशनी होने का एह्शाश जरूर हो जाता है ।

ख्वाबो में रहकर हकीकत से छुटकारा तो नहीं मिलता
मगर खुशनुमे हकीकत का एक नजारा जरूर मिल जाता है ।

अंधरे - रोशनी , ख़्वाब - हकीकत इनकी जद्दो जिहद में
जिंदगी का कारवाँ आगे निकल ही चलता है ।

सवालों की गर्मी और जवाबों के बयार ऐसी जुगलबंदी करते हैं
मानो पुश्तैनी रिश्ता हो इनका ।

दुसरो के सवालों की गर्मी के लिए तो छतरी भी लगा लो
लेकिन खुद के जो सवाल हैं उनसे कोई कैसे बचे ।

क्या हर सवाल का जवाब होता है ?
क्या हर जवाब का अस्तित्व सवाल से ही होता है ?

चाँद का बैरी कौन ? चांदनी रातों में अँधेरा छटने के साथ साथ
तारों  की चमक भी धूमिल हो जाती है ।

बड़े टापूओ पर पहुच जाने वालों को छोटे टापुओ के पिघलने
से दर्द क्यों नहीं होता ?

जिंदगी के पैमाने नापते नापते इतनी दूर निकल जाते हैं
की प्रतीत  होता है शायद ये माप ही ज़िन्दगी हो ।

- चंचल प्रकाशम्