Tuesday, July 1, 2014

शफेद रंग

रंगो से भरे पंख फड़फड़ाती तितली रंगो के पीछे ही भागती है ।
कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे उसे पता ही नहीं
की कितने रंगीन हैं उसके खुद के पंख
काश कभी ठहर कर,
साँस लेकर देख पाती अपने रंगीन पंखो को ,
काश कुछ देर रुक कर आत्मलोकन  कर पाती
शायद उसकी ज़िन्दगी भी रंगीन हो जाती
उन फूलो की रंगो की तरह जिनके फीछे रोज़ भागती है वो ।

मगर इतनी फुर्शत किसे कि कोई ठहरे
अगर रुकेंगे तो पीछे नहीं छूट जायेंगे
लाइफ इज़ अ रेस, एंड यू हाव टु रन फ़ास्ट टू विन
दौड़ो और तेज़ दौड़ो , और तेज़
बहुत तेज़ दौड़ा था वो, इतना तेज़
की सबसे आगे की पंक्ति में खड़ा था
जब पीछे मुड़ के देखा तो दूर दूर तक ज़िन्दगी कही दिखाई नहीं दी ।

पिला रंग
लाल रंग
बैंगनी रंग
हरा रंग
रोज़ तन्मयता से लाती थी
और संजो के रखती थी वो रंगो को।
दिन में चैन नहीं रात को आराम नहीं ,
सांस कैसे ले सकती हैं, जब तक सारे रंग बटोर न ले ,
पुरखो से सुनती आई है सबने कोशिश की
पर कोई सारे रंगो का एक साथ सुख न ले सका है अभी तक ,
मेहनत तो करनी पड़ेगी, दस्तूर के मुह पर तमाचा जो मारना है ।

अंतिम रंग बचा था मिलाने को
शायद ज़िन्दगी का अंतिम पहर भी हो
सभी रंगो की झिलमिलाती रौशनी में नहाना चाहती थी
मगर ये क्या?
अंतिम रंग मिलते ही सबकुछ रंगहीन हो चूका था
आँखो में तैर रहे थे रंग,  मगर चेहरा शफेद पड़ा हुआ था
कहाँ गए रंग?




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