रंगो से भरे पंख फड़फड़ाती तितली रंगो के पीछे ही भागती है ।
कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे उसे पता ही नहीं
की कितने रंगीन हैं उसके खुद के पंख
काश कभी ठहर कर,
साँस लेकर देख पाती अपने रंगीन पंखो को ,
काश कुछ देर रुक कर आत्मलोकन कर पाती
शायद उसकी ज़िन्दगी भी रंगीन हो जाती
उन फूलो की रंगो की तरह जिनके फीछे रोज़ भागती है वो ।
मगर इतनी फुर्शत किसे कि कोई ठहरे
अगर रुकेंगे तो...