तपती मरुभूमि में मरूद्यान सी
प्रतीत हुई थी तुम्हारी आँखें
थके निर्जलित पथिक की तरह
बिना सोचे ही कूद पड़ा था खुद को सराबोर करने ।
तुम मंजिल नहीं थी,
ना तो थी तुम रास्ता
तुम तो बस एक ठहराव थी
जहाँ प्यास बुझाने को रुका था कारवां हमारा ।
गर्म हवा की लपटों से बचने और
सूखते कंठ को तर करने के आनन-फानन में
तैरने ना आने का संज्ञान विलुप्त सा हो गया था
तुम्हारी आँखों में गहराई बहुत थी, मै डूब गया ।
- चंचल प्रकाशम्
"सूखते कंठ को तर करने के आनन-फानन में"
ReplyDeleteSahi....story of every man :P
waah waah...is kavi k vichaaro ka ठहराव hona namumkin hai...
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