Saturday, April 7, 2012

ठहराव















तपती मरुभूमि में मरूद्यान सी
प्रतीत हुई थी तुम्हारी आँखें
थके निर्जलित पथिक की तरह
बिना सोचे ही कूद पड़ा था खुद को सराबोर करने ।

तुम मंजिल नहीं थी,
ना तो थी तुम रास्ता
तुम तो बस एक ठहराव थी
जहाँ प्यास बुझाने को रुका था कारवां हमारा ।


गर्म हवा की लपटों से बचने और
सूखते कंठ को तर करने के आनन-फानन में
तैरने ना आने का संज्ञान विलुप्त सा हो गया था
तुम्हारी आँखों में गहराई बहुत थी, मै डूब गया ।


- चंचल प्रकाशम्







2 comments:

  1. "सूखते कंठ को तर करने के आनन-फानन में"
    Sahi....story of every man :P

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  2. waah waah...is kavi k vichaaro ka ठहराव hona namumkin hai...

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